अब बन्दा खुद क्या अर्ज करे अपने बारे में। हिन्दीभाषी क्षेत्र हरिद्वार में जन्मा एक मराठीभाषी हूं जिसकी बीबी और दो में से एक पुत्रवधू हिन्दीभाषी है। हायर सैकेण्डरी तक की शिक्षा मध्यप्रदेश से पूरी करके बीए, एमए, हरिद्वार, देहरादून और मुजफ्फरनगर से 1972 तक पूरा किया। फिर हरिद्वार, जगाधरी, लाडवा और सहारनुपर होते हुए वापिस हरिद्वार तक आते आते पैंतीस वर्ष की अध्यापकी कमाई, बाद में पत्रकारिता में ऐसे फंसे कि पीएचडी करने में 23 साल लगा दिए। अंतत: हो ही गए।
1972 में ही ज्वालापुर की कुमारी प्रमोद से ब्याह रचाया और मराठी परम्परा में उन्हें नाम दिया सौ.संगीता बुधकर। उन्होंने 1973 में सौरभ और 1977 में पल्लव नाम दो पुत्र देकर मुझे पितृत्व का सुख और गौरव दिया। संप्रति ये दोनों दिल्ली में अपने घरबार चला रहे हैं। सौरभ सौ.मृणाल व नन्हीं अपरा के साथ तथा पल्लव सौ. पारुल के साथ मजे में है। अपनेराम बीबी के साथ कभी हरिद्वार तो कभी बच्चों के पास वैशाली ।
साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, पत्रकारीय संस्थाओं में भागीदारी बनी रहती है। कुल मिलाकर रामजी ने खुश रखा है, खुश ही रहने की कोशिश में रहते हैं।